शरीर की खुराक भोजन, आत्मा की खुराक तप-संयम -मुनि प्रशांत
सिलीगुड़ी (वर्धमान जैन): मुनिश्री प्रशांत कुमार जी मुनिश्री कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में मासखमण तप करने वाली श्रीमती चंद्रकला बजरंग सेठिया का भव्य तपाभिनंदन समारोह आयोजित हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- धर्म मंगलकारी है, अमंगल को दूर करने वाला है। धर्म मूल तत्व है,जड है। धर्म की जड हरी रहनी चाहिए। जड हरी रहती है तो फल- फूल मिलते रहेंगे। प्रभु नाम की माला फेरने से माल मिलता है,तभी व्यक्ति मालामाल बनता है। सुबह उठते ही भगवान का जप अवश्य करना चाहिए। भारतीय संस्कृति का प्राचीन अंग त्याग है।तप -त्याग का अभिनन्दन सदैव किया जाता है। तपस्या से आत्मा की शक्ति बढ़ती है।शरीर की खुराक भोजन, आत्मा की खुराक तप-संयम है। बिना कामना भौतिक लालसा के तपस्या निष्काम भाव से ही करनी चाहिए। तपस्या नाम और यश प्राप्ति के लिए अथवा भौतिक रिद्धि- सिद्धि प्राप्ति के लिए नही की जाती है। यह एकमात्र आत्मशुद्धि एवं कर्म निर्जरा की भावना से की जाती है। भौतिक लाभ तो उससे स्वत: ही मिलने वाला एक परिणाम है। खाद्य वस्तुएं मनोनुकुल सामने होते हुए भी संकल्प पूर्वक उनका त्याग कर देना संयम की साधना है विपुल भोग सामग्री एवं मन इच्छित सुविधाजनक वस्तुएं उपलब्ध होने पर भी कुछ मात्रा में भोगोपभोग के संयम का संकल्प कर लेना या उनका त्याग कर देना ही भगवान महावीर का बताया संयम मार्ग है। इस संयम की साधना से जहा अनेकानेक राष्ट्रीय समस्याएं समाहित होती है वहीं व्यक्ति को मानसिक तोष एवं शांति का अनुभव होता है। भगवान महावीर द्वारा निर्देशित संयम और सीमाकरण का संदेश सभी को अमल में लाने की आवश्यकता है। श्रीमती चंद्रकला सेठिया ने बहुत बड़ी भेंट मासखमण की अर्पित की है। पूरे परिवार में धर्म के संस्कार है। परिवार के सहयोग से ही व्यक्ति धर्म के पथ पर अग्रसर होता है। बजरंग जी स्वयं धार्मिक रुचि वाले है। परिवार धर्म के पथ पर आगे बढता रहें यही मंगलकामना है।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा – भावयुक्त होकर की गई क्रिया भावक्रिया होती है। भावना का बहुत बड़ा महत्व होता है। बिना भावना के की गई धार्मिक क्रिया भी निष्प्राण होती है। भावना की तरंगों से दूसरे व्यक्ति के विचारों को भी बदला जा सकता है। भावना व्यक्ति के मन, आदत, विचार तथा व्यवहार को बदल देती है। तपस्या के साथ आडम्बर होना उसके महत्व को न्यून कर देता है।तप प्रदर्शन का नही आत्मकल्याण का पथ है।तन मन की विशुद्धि का हेतु है। श्रीमती चंद्रकला सेठिया ने जागरुकता के साथ मासखमण तप किया है। तप के साथ जप, ध्यान और स्वाध्याय का योग उसके महत्व को बढ़ा देता है। जैन शासन एवं तेरापंथ धर्मसंघ में अनेकों साधु- साध्वी ने तप करके आत्मकल्याण किया है एवं जीवंत प्रेरणा प्रदान की है। अनेकों श्रावक श्राविका ने धर्मसंघ एवं कुल का गौरव बढ़ाया है। गुरुदेव की ऊर्जा से सारे कार्य अपने आप संचालित हो जाते है।
तेरापंथ सभा अध्यक्ष रुपचंद कोठारी, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष नरेश धाडेवा, तेरापंथ महिला मण्डल, अणुव्रत समिति, श्रीमती संगीता पटावरी, सुश्री तानिया सेठिया ,विनय सेठिया एवं पारिवारिक बहनों ने गीत एवं वक्तव्य के द्वारा तप अनुमोदना की। साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा जी के संदेश का वाचन महासभा प्रभारी किशन आंचलिया ने किया।आभार ज्ञापन सभा मंत्री मदन संचेती ने किया।कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री कुमुद कुमार जी ने किया। 22 श्रावक श्राविका ने इस चातुर्मास में तेला, पंचोला अट्ठाई, ग्यारह तप का संकल्प लिया। अनेकों श्रावक श्राविकाओं ने त्याग की भेंट मुनि श्री को अर्पण की। तेरापंथी सभा, तेरापंथ युवक परिषद् ,तेरापंथ महिला मंडल, अणुव्रत समिति ने तपस्विनी चंद्रकला सेठिया को सम्मानित किया।