यदुवंशियों की कुलदेवी आदिशक्ति योगेमाया विंध्यावासिनी

समस्त यदुवंशियों की कुलदेवी हैं आदि शक्ति माँ भवानी की अंश माँ योगमाया । माँ योगमाया ने बाबा वसुदेव के चचेरे भाई बाबा नंदराय के यहाँ उनकी पुत्री के रूप में अवतार लिया था। इन्हीं माँ योगमाया को जब दुष्ट कंस ने मारने की कोशिश करी थी तब आदिशक्ति ने अपना विकराल रूप दिखाया था।

इसके बाद माँ योगेश्वर योगमाया विंध्याचल के पर्वतों पर जाकर विराजमान हुईं एवं कालांतर में विंध्याचल की महारानी के नाम से विश्वविख्यात हुईं।ये शक्तिपीठ आज भी उत्तरप्रदेश के मिरज़ापुर में स्थित है जहाँ हर वर्ष लाखों की तादाद में यदुवंशी क्षत्रीय अपनी कुलदेवी जगतजननी माँ योगमाया के दरबार में माथा टेक मंगल कामना के लिए आते हैं।

माँ सोगमाया विंयध्यवासिनी, विंध्याचल धाम, मिर्जापुर उतरप्रदेश 

कुलदेवी आदिशक्ति मां योगमाया को कैला माता के नाम से भी जाना जाता है वैसी तो सबसे मुख्य शक्ति पीठ विंध्याचल हैं लेकिन इनके कैला देवी रूप के दो पीठ हैं पूरे भारत में। पहला करौली में और दूसरा संभल।

करौली के कैला देवी के इतिहास का अध्ययन करने पर पाया कि इन देवी की मूर्ति केदारगिरी साधु द्वारा ई0 1171 में करौली क्षेत्र में स्थापित की गई थी जो एक छोटे से कमरे में थी ।बाद में यदुवंशी अहीर राजाओं ने इस मन्दिर में अनेक भवनों का निर्माण किया। जब यदुवंशी अहीर करौली छोड़कर जा रहे थे तो उन्होंने कैला मां का दर्शन किया था,कैला मां ने उन्हें वरदान दिया था”मेरे बच्चो तुम जहां भी जाओगे मै तुम्हारे भुजाओं में रहूंगी” करौली के यदुवंशी अहीर मध्यप्रदेश और पूर्वांचल में जा बसे एवं अनेक कैला देवी माता के मंदिरों का निर्माण करवाया।

पश्चिमी यूपी के यादव बाहुल्य जिला संभल में विराजमान हैं समस्त यदुवंशियों की कुलदेवी आदिशक्ति विंध्यवासिनी मां योगमाया का कैला देवी शक्ति मंदिर, यहां माता के चमत्कारों की अनेकों कहानी जुड़ी है, मुलायम सिंह जी के जन्म से पूर्व इनके पिता स्वर्गीय चौधरी सुधर सिंह जी ने कुलदेवी के शक्तिपीठ पर जाकर पुत्र रत्न की कामना की थी और उन्हीं के प्रताप से मुलायम सिंह का जन्म हुआ।मुलायम सिंह आज जो कुछ हैं अपनी कुलदेवी के आशीर्वाद के कारण हैं।

यदि आप कभी पूर्वांचल जाए तो मां भवानी के मंदिर के साथ एक योद्धा की भी मूर्ति आपको देखने मिलेगी, उनमें से ज्यादातर यदुवंशी क्षत्रियों की ही रहती, आदिशक्ति मां दुर्गा भवानी और यदुवंश शिरोमणि वीर अहीर लोरिक की कहानी जगतप्रसिद्ध है, वीर लोरिक जी का जन्म मां दुर्गा के आशीर्वाद से हुआ था उन्हें साक्षात मां दुर्गा के दर्शन प्राप्त थे हर युद्ध में मां दुर्गा उनके साथ रहती थी एवं उनके भुजाओं में वास करती थी, यदुवंशी योद्धा आलह ऊदल की वीरता किसी से छुपी नहीं, जो कि कुलदेवी मां आदिशक्ति योगमाया विंध्यवासिनी मां शारदा भवानी के बहुत बड़े भक्त थे, बख्तावर सिंह, दुबरी सिंह जैसे अनेकों यदुवंशी क्षत्रिय अहीरों की वीरता की कहानी आपको सुनने मिलजाएगी जिन्हे साक्षात मां योगमाया भवानी का दर्शन प्राप्त था।

माँ राजराजेश्वरी श्री काला देवी, करौली, राजस्थान 

स्वयं द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण भी अपनी बहन माँ योगमाया के आगे सादर शीष झुकाते थे क्योंकि ये क्षत्रियों की परंपरा का हिस्सा है शक्ति की उपासना करना ।

नवरात्रि के पवित्र नो दिनों तक नवदुर्गा माँ के भिन्न भिन्न रूपों की उपासना की जाती है। वैसे नवरात्रि का उत्सव भी यादवो से जुड़ा है। नवरात्रि में गुजरात के प्रसिद्ध गरबा और राजस्थान के डांडिया के बारे में कौन नही जानता। डांडिया एक तरह से मार्शल आर्ट का ही रूप है और इसकी शुरुआत ब्रज के यदुवंशियो से हुयी थी हजारो वर्ष पूर्व। महाभारत काल में अक्सर ब्रज के अहीरों द्वारा लट्ठ, तलवारों से डांडिया रास का वर्णन मिलता है।

इतना ही नही गुजरात के प्रसिद्ध शक्तिपीठ पावागढ़ मन्दिर के शिलालेखो से भी ये ज्ञात होता है कि सदियों पहले पावागढ़ पर शासन अभिरो का था और उन्होंने ही सर्वप्रथम यहाँ अपनी अराध्य चामुंडा भवानी के ममन्दिर की स्थापना करी अऔर उन्हें प्रसन्न करने के लिए यहाँ तलवारों से गरबा खेला। यही से गरबा की भी शुरुआत हुई जिसे आज विश्व में ख्याति है।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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