कांटाबांजी (वर्धमान जैन ): मुनि प्रशांत कुमार जी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा – जीवन में धार्मिक क्रिया करते है लेकिन क्रिया का महत्व तभी जब भाव उसके साथ जुड जाते है तो उस क्रिया में प्राण आ जाते है।मंत्र जाप के साथ भाव, श्रद्धा भक्ति जुड़े वह मंत्र फलदायी बन जाता है।तोतारटन की तरह सिर्फ मंत्र उच्चारण करने से वास्तविक उद्देश्य पूर्ण नहीं होता है।मंत्र में इतनी शक्ति होती है कि देवता प्रभावित होते है। भक्तामर स्तोत्र में आचार्य मानतुंग की भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। भगवान, तीर्थंकर के प्रति गहरी श्रद्धा होनी चाहिए। त्याग तपस्या करने के साथ मन में विश्वास होना चाहिए कि भगवान, गुरुदेव,साधु – साध्वी का आशीर्वाद एवं उनकी शक्ति से कर रहा हूं। श्रद्धा से बड़े – बडे संकट दूर हो जाते है , कार्य सरल एवं शीघ्र हो जाता है। तपस्या आत्मशुद्धि की भावना एवं निष्काम कामना से करनी चाहिए।कांटाबांजी में तपस्या का क्रम निरंतर चल रहा है ये धर्म के प्रति अच्छा लगाव है। अरिहंत खाने का शौकिन होने के उपरांत तप कर मनोबल एवं जीभ के संयम का परिचय दिया है। श्रीमती दीपा पुष्पकांत गोयल ने हिम्मत कर प्रथम बार अट्ठाई तप किया है। परिवार का सहयोग एवं स्वयं के आत्मबल से ही व्यक्ति तप कर सकता है।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा – जैन धर्म में सुपात्र दान का बहुत महत्व है। तीर्थंकर बनने के बीस कारण में एक सुपात्र दान है।दान देने के साथ विवेक होना आवश्यक है। प्रदर्शन, कामना एवं अज्ञानपूर्वक दिया गया दान उपयोगी नहीं होता है। दान के साथ धर्म के प्रति भक्ति, समर्पण, श्रद्धा भाव जुड जाए। श्रावक भावों से बारहव्रत का पालन करें।साधु की साधना में श्रावक निमित्त बन अनन्त कर्मों को क्षय कर देता है।महानिर्जरा कर विपुल पुण्य का संचय करता है। बिना विवेक, उपयोग की धार्मिक क्रिया का महत्व नहीं रहता है। अरिहंत जैन का अट्ठाई तप अपने आप में आश्चर्य है। अरिहंत नाम को सार्थक बनाएं यही मंगलकामना एवं श्रीमती दीपा पुष्पकांत गोयल ने प्रतिकुलता के उपरांत जागरुक रहकर नित्य दर्शन सेवा कर जप के साथ तपाराधना की है।
मीडिया प्रभारी अविनाश जैन ने बताया – अरिहंत जैन -8 , श्रीमती दीपा पुष्पकांत गोयल -8 का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ सभा से विवेक जैन तेरापंथ युवक परिषद से सुमीत जैन, पुष्पकांत गोयल, श्रीमती संतोषी जैन स्वयं तपस्वी दीपा ने भावाव्यक्ति दी एवं तेरापंथ महिला मंडल ने गीत के द्वारा तप अनुमोदना की। सभा द्वारा साहित्य से तपस्वियों का सम्मान किया गया।