पूरानी कमीज़ मेरी ।
ढूंढ़ते ढूंढ़ते
अलमारी से
मिली ।।
कितनी नई है !
कितने किस्से हैं मेरे
उसके साथ !
कालेज ग्राउंड में
जब उनसे मिला था
थी ये कमीज़
मेरे तन पर ।
रंग नहीं बदला है
झाड़ दिया तो
फैल गया
घर भर में रंग ।।
एक एक दृश्य
कैसे जिन्दा है
जीवन एल्बम में ।।
अब मेरे मन में
हो रहा प्रलंबित
एक ओस की बूंद की
अस्थिरता सहित ।
✍🏾मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525
✒️अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत,मयूरभंज