क्यों वो दाग़
मन से नहीं मिट रहा !
क्यों वो चित्र
मन के काॅपी से
फ़ाड़ नहीं पा रहा !
कैसे नदी बनकर
बह जा रही है
चांदनी रात बन
छा रही है ।।
शीतल और कोमल
चांदनी रात ।।
✍🏾मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा,रायगडा जिला
मो_8917324525
✒️अनुवाद: ज्योति शंकर पण्डा
शरत,मयूरभंज