लघुकथा : फोन कॉल

✒️नाहेदा शाहीन

नीलिमा बेचैन है। चिंतित है। उसने उषाकाल में ही अपने घर की सफाई कर ली और बारंबार घड़ी के तरफ देखने लगी। बड़ी बेचैनी से वह घड़ी की तरफ देखती और अपने फोन की तरफ। आज उसकी बेटी रायपुर से घर पर लौट रही थी। उससे रहा न गया, उसने फोन करना शुरू किया। पहला कॉल, फिर दूसरा कॉल, फिर तीसरा। बच्ची फोन उठा ही नहीं रही थी, मां के मन में असंख्य विचारों की तूफान उसके दिल और दिमाग में मची थी, बिटिया अकेली जो आ रही थी।

उसने इधर देखा उधर देखा पुनः फोन की तरफ देखा वह आतंकित आशंकित हो गई। तीन कॉल के बाद भी बेटी ने फोन नहीं उठाया! कई विचार उसके हृदय को मथ रहे थे, कोई अनहोनी तो नहीं हो गई? विचारों के समुद्र में वह निष्कर्ष का मंथन कर रही थी। बार-बार घड़ी को देखना और फिर फोन को देखना यही क्रम चलने लगा।

वह अपने इष्ट देव को स्मरण करके बिटिया के अच्छे से घर आने की मनौती करने लगी। बेचैन ह्रदय के साथ वह पुनः अधीर होकर बिटिया के बारे में सोचने लगी, जैसे उसके विचारों पर विराम ही नहीं लग रहा था।

अचानक उसने निर्णय लिया की वह पुनः कॉल करेगी, स्थिर चित् से उसने फोन किया। इस बार बिटिया ने कॉल उठाया और कहा, “मम्मा मुझे सोने दो, मेरी नींद अधूरी है।” उसने कुछ इस प्रकार कहा। नीलिमा को बुरा तो लगा, परंतु उसने एक लंबी सांस लेकर मुस्कुराते हुए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता जताते हुए उस अदृश्य शक्ति को प्रणाम किया और एक मोहक मुस्कुराहट के साथ पुनः अपने दिनचर्या में जुट गई।

भवानीपटना, ओड़िशा
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Sunil Kumar Dhangadamajhi

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