गुनगुनाती बारिश में
रुनझुनाती सर्दी
कंवल भरे ताल से
सुनाई दे रहे हैं
लाखों गीत ।।
सुकेशिनी के बालों की
भीनी भीनी खुशबू
महबूबा के होंठों पर
खेल रही
चांदनी रात की छवि
चित्रित मुंह की माया में
जगमगाती बिजली
लता की तरह लटकती है
मन के आश्रय में ।
टूट चुकीं हैं अहंकार के
तमाम सीढ़ियां
शब्दों की आतुरता
बन गए हैं कली
शायद इसलिए
बरस रही है बारिश ।