नदी किनारे
पुण्य हो !
नदी !
वो भी पुण्य हो !
पाप !
कल कल होकर
बह जाए ।
प्यास का हो अंत !
वो अंत हो
एक सफ़र ।
सुन्दर सफ़र
आरम्भ की ओर
अभिलाषा की ओर ।
गीत समाप्त हुआ
सोचने मात्र के बाद
चकना चूर हो गई
फूलों की सौगात
इतना सुकौमार्य
कौन भर देता है
पहाड़ की छाती में
चांद की भूख में ?
ओडिआ कविता – प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
हिंदी अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा