130 सामूहिक आयम्बिल तप आराधना
कांटाबांजी (वर्धमान जैन): मुनि प्रशांत कुमार जी मुनि कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सामूहिक आयम्बिल तप आराधना हुई जप अनुष्ठान के पश्चात् जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा- जैन धर्म में साधना का बहुत महत्व है। विभिन्न प्रकार की साधना के द्वारा पूर्व बंधे हुए कर्मों को क्षय किया जाता है। कर्मों से मुक्त होने पर आत्मा शरीर से मुक्त, दुख से मुक्त एवं संसार से मुक्त होकर सिद्धावस्था को प्राप्त कर लेती है। आयम्बिल तप अपने आप में कठिन होता है। उपवास में पूर्णत: आहार का त्याग किया जाता है लेकिन आयम्बिल तप में इस प्रकार निरस भोजन करके मन और रसनेन्द्रिय का संयम करना बहुत कठिन होता है।विगय परित्याग से भोजन की आसक्ति कम होती है। आसक्ति से किया गया भोजन कर्म बंधन के साथ इहलोक और परलोक दोनों को बिगाड़ देता है। भोजन साधना में बहुत सहयोगी बनता है।
तामसिक और राजसिक भोजन आवेश आवेग को बढ़ाता है। इंद्रियों और कषाय का उपशांत होना साधना की निष्पति है। आयम्बिल तप दोनों को उपशांत करता है। भगवान ऋषभ के की पुत्री सुंदरी ने साठ हजार वर्ष तक आयम्बिल तप करके चक्रवर्ती सम्राट भरत को शरीर की निश्वरता का संदेश देने के साथ संयम प्राप्ति की आज्ञा के लिए प्रेरित किया। श्रीपाल – मैनासुंदरी और द्वारिका नगरी की घटनाएं आयम्बिल तप के महत्व को उजागर करती है। जैन धर्म में अनेकों साधक महीनों तक आयम्बिल तप करके संयम का जीवंत संदेश देते हैं। आज के भौतिकवादी युग में, रसलोलूपतावादी माहौल में आयम्बिल करना प्रेरक है। तप के साथ जप का योग आत्मशक्तियों को अधिक शक्ति सम्पन्न बना देता है। सामूहिक तप – जप से ऊर्जा अधिक प्रवाहमान होती है, वातावरण में विशुद्धता बढ़ जाती है। जप के पश्चात् स्व – पर की मंगलकामना करनी चाहिए। भावपूर्वक की गई मंगलकामना स्वयं के चिंतन को सकारात्मक बनाने के साथ औरों की भावशुद्धि करता है। आयम्बिल तप आत्मा को उज्ज्वल बनाने के साथ शरीर को आरोग्य प्रदान करता है।
मीडिया प्रभारी अविनाश जैन ने बताया – तेरापंथ महिला मण्डल के आयोजन में 130 साधकों ने आयम्बिल तप आराधना की। मुनि कुमुद कुमार जी ने सामूहिक रूप से जप अनुष्ठान करवाया। श्रीमती ज्योति जैन ने आयम्बिल के महत्व को बताया। श्रीमती अंकिता आशीष जैन ने कृतज्ञता व्यक्त की।