अनुशासन तेरापंथ का मूलमंत्र -मुनि प्रशांत
राउरकेला (वर्धमान जैन): आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि प्रशांत कुमार जी मुनि कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में 159 वां मर्यादा महोत्सव का आयोजन हुआ। जनसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- पूरी दुनिया में एकमात्र तेरापंथ धर्मसंघ है जो मर्यादाओं का महोत्सव मनाता है। यह अपने आप में अनूठा आकर्षक एवं प्रेरणादायक महोत्सव है। आज एक और जहा हर क्षेत्र में अनुशासन और मर्यादाओं का भंग हो रहा है। वही तेरापंथ धर्मसंघ मर्यादा पालन में अपनी कटिबद्धता प्रदर्शित करते हुए गरिमापूर्ण ढंग से मर्यादाओं का सम्मान करता है। अनुशासन ही तेरापंथ का मूलमंत्र है। जैन आगमों के अनुसार मुनिचर्या का पालन करते हुए तेरापंथ संघ के साधु-साध्वी ने और सम्पूर्ण संघ ने विकास के अनेक नये आयाम खोले हैं। इसका मूल आधार हे एक गुरु का अनुशासन। आचार्य भिक्षु आत्मसाधना के लिए पूर्णतया समर्पित थे। इस मार्ग में आने वाली बाधाओं कष्टों को झेलना उन्हें मंजूर था लेकिन सत्य की जो राह पकडी उससे हटना स्वीकार नही था। आचार्य भिक्षु ने मर्यादाएं किसी पर थोपी नही सबकी सहर्ष स्वीकृति होने के बाद ही इन मर्यादाओं को संघ में लागू किया। आचार्य भिक्षु अपना कोई नया संघ बनाना नहीं चाहते थे, किंतु जिस राह पर वे चले लोग स्वत: उनके साथ चल पड़े और संघ निर्मित हो गया। जनसाधारण ने ही इस संघ का नामकरण कर दिया तब आचार्य भिक्षु ने इसी नामकरण को सहज स्वीकार करते हुए उसे नया अर्थ प्रदान किया। तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा को भी अत्यधिक महत्व दिया गया। शारीरिक दृष्टि से अक्षम अथवा बीमार वृद्ध साधु-साध्वी की सेवा की व्यवस्था यहां बेजोड है। आज्ञा मर्यादा और सेवा में तेरापंथ संघ में शानदार परम्परा है। जो इस संघ को महानता के शिखर पर पहुंचाने वाली है।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा- अनुशासन और मर्यादा का पालन ही मर्यादा का सबसे बडा सम्मान है। तेरापंथ धर्मसंघ में अनुशासन को सर्वोपरि महत्व दिया गया है। लगभग 260 वर्ष पूर्व आचार्य भिक्षु ने जो मर्यादाएं बनाई उनमें आज तक कोई परिवर्तन नही हुआ और उनका पालन करने को पूरा संघ तत्पर रहता है। तेरापंथ संघ में अहंकार और ममकार विसर्जन की जन्नमघुटि मिलती है यही वजह है कि शिष्य-शिष्या बनाने की होड़ से मुक्त होकर तेरापंथ धर्मसंघ साधना की गहराई और विकास के शिखरों को छूने में सफल रहा है। एक गुरु और एक विधान यह तेरापंथ की पहचान है। जहां अनुशासन और मर्यादा निष्ठा होती है वही शुद्ध साधना हो सकती है। आचार्य का निर्णय एवं उनकी दृष्टि ही सर्वोपरि होते हैं।
तेरापंथा सभा ने जानकारी देते हुए बताया- हाजरी वाचन के पश्चात् दोनो ही संतो ने खडे होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। श्रावकनिष्ठा पत्र का वाचन तेयुप अध्यक्ष हितेश बोथरा ने किया। जैन संस्कारक रुपचंदजी बोथरा, ललिता भंसाली, राजगांगपुर सभा अध्यक्ष हेमंत कोठरी, स्नेहलता चौरडिया, रंजना भंसाली, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी, उपासक पानमल जी नाहटा, कांटाबांजी सभा सहमंत्री गजानन जैन, राउरकेला महिला मण्डल अध्यक्ष श्रीमति सरोज गोलछा ने विचारों को प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत की भावपूर्ण प्रस्तुति पेश की। आभार ज्ञापन सभा मंत्री दिनेश गिडिया के किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमुद कुमार जी ने किया। सम्मान कार्यक्रम का संचालन सिद्धार्थ कोचर किया। अतिथिगण का सम्मान सभा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में केसिंगा, सिंधिकेला, कांटाबांजी, बेलपाडा रामपुर पटनागढ़, झारसुगुडा, राजगांगपुर, रांची, कटक बैंगलोर इत्यादि क्षेत्रों से श्रावक समाज उपस्थित रहा। संघगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।